इश्क
Finding love may be hard but for Mr Khallas even understanding of love is a big challenge.
जवां हम भी थे जवां वो भी
हौसले बुलन्द थे फिर फासले को क्या गम थे
सुरूर था, गुरुर था, फितूर भी था
बचपन था, जवानी थी, फिर अपने को आजमाना भी तो था
खूने खंजर से करें या तीरे निगाहों से
कत्ल तो फिर कत्ल ही होता है
चश्मे तर से न सही बदनसीब के लिये
मुस्करा कर दिल तो रुसवा न कीजये
सब्र का इम्तिहां जब ले चुके वो
नामर्द हो कह तन्हा छोड़ चले वो
सितम करना उनका गुनाह न था कभी खल्लास
सितम न सहना हमारा पर हुआ नगवारां उनको
गैर-ए-यकीं से डिगा न एतबार कभी
करके भरोसा मगर अपने पर पछताए बहुत
ऐ दिल मुझे बता दे तू किस पे आ गया है
काफिर सिला तो दे इस मौजे दिल का बिल क्या होगा
ख़ल्लास मुहब्बत सा सितम् न कर
बेवफा नहीं जो यूँ ही छोड़ जायेगी
गर बेवफा ही सही तो यूँ भी न रुक पायेगी
मुद्दतों के बाद वो रूबरू हुए
न हमसे तब कुछ हुए
न हमसे अब कुछ हुए
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