खल्लास
फरमाते हैं वो ज़ुबाने उर्दू से नहीं कोई सरोकार आपका |
फरमाया गौर तो तख्खलुस खल्लास में कोई ऐब न पाया ॥
पागल खल्लास
एक भद्र पुरुष ने दूसरे भद्र पुरुष से कहा :
पागल है खल्लास
व्यर्थ ही हँसता रहता है,
हमें तो जमाना हो गया मुस्कराये हुए ।
सही फरमाते हैं जनाब, महा पागल है खल्लास
व्यर्थ ही differential equations solve करता रहता है,
हमने तो जिंदगी बिता दी दो के पहाड़े में।
कौन नहीं जानता उस सिरफिरे को , एक और सज्जन बोले
व्यर्थ ही समस्या के समाधान में लगा रहता है,
इतना भी नहीं जानता समस्याये तो मात्र status symbol हैं|
वो अक्खड़ खल्लास, एक गड़मान्य सज्जन ने सहमति दी
व्यर्थ ही दुश्मनी मोल लेता है,
यह भी नहीं जानता हमसे तो जमाना दम भरता है|
अजी जाने भी दीजिये उस बेहुदे को, कहीं से नम्र निवेदन आया
व्यर्थ ही कविता पाठ करता है,
अजी कीचड़ में डेले मारने का अंजाम भी नहीं जानता है|
वो dumbo खल्लास, कहीं से कटाक्ष आया
व्यर्थ ही ज्ञान की तलाश में लगा रहता है,
अजी लदे पेड़ को तो खाक में ही शाख को झुकाना पड़ता है।
वो छिछोरा खल्लास, एक भद्र महिला से न रहा गया
व्यर्थ ही ठिठोली करता है,
प्यार का इजहार भी कहीं भरी महफ़िल में होता है॥
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